१९९२ प्रगतिशील लेखक संघ का राज्य सम्मलेन, भोपाल
(बांये से मैं, ज्ञानरंजन, कमला प्रसाद और कुमार अम्बुज)
एक अकेला चित्र इतना ताकतवर होता है कि वर्तमान की आपाधापी और तनाव के भार को एक क्षण में हटाकर अतीत की उन स्मितियों में फ़ेंक देता है जिन्हें हम पीछे कहीं अकेले कमरे में छोड़ आये थे. ऐसा लगता है कि आत्मा नहीं, स्मृतियाँ अजर-अमर होती हैं. इन्हे न कोई शास्त्र काट सकता है न अग्नि जला सकती है. दुनिया की सबसे ताकतवर और पवित्र चीज स्मृतियाँ होती हैं. एक ऐसे blackboard पर जिसे न मिटाया जा सकता है और न बदला जा सकता है. अतीत की इन स्मृतियों को किसी भी तरह से कलुषित नहीं किया जा सकता है. स्मृतियाँ अपने होने में पवित्र होती हैं. दुनिया की सबसे मूल्यवान और पवित्र संपत्ति स्मृतियाँ ही होती हैं. रिश्तों को बचने के लिए स्मृतियों को बचाना होता है. स्मृतियाँ बची रहती है तो रिश्ते भी बचे रहते हैं. स्मृतियाँ हस्तांतरित होती हैं और विरासत की तरह सोंपी जाती है. स्मृतियों की चोरी नहीं होती है, और न इसके लूटे जाने का भय होता है. हमारी असावधानी में भी यह सुरक्षित रहती है...............
होली पर्व की शुभकामनाओं के साथ.......