संत शिरोमणि परम पूज्य कहे जाने वाले, माने जाने वाले श्री सुधांशु महाराज पर धोकाधडी का केस दर्ज हो गया है| केस दर्ज हुआ है साथ ही गिरफ़्तारी का वारंट भी जारी हो गया है| धार्मिक प्रवचनों में बड़ी श्रद्धा के साथ नियमित हाजरी देने वाले भक्तों के लिए गहरे सदमे की खबर है| लेकिन वे खुद को और शंकालुओं को समझाने के लिए अनेक भावुक तर्क, संत को बदनाम करने की साज़िश के आवेश भरे आरोप खोज लेंगे| संत कहते हैं की मोक्ष के लिए मिट्टी, पत्थर, सोना और रुपया पैसा एक समान होता है| पर ये दूसरों को समझाने के लिए है| दूसरों के मन के पाप को मारने के लिए कहा जाता है| संत का मन जरा बड़ा पापी होता है| वह ऐसे भावुक तर्कों से परास्त नहीं होता है| संत दूसरों को जितना अधिक मोह से निकलने के लिए जोर लगाता है न्यूटन के गति के नियम के आधार पर विपरीत दबाव से खुद उतने ही जोर से पाप में धंसता जाता है| सुधांशु महाराज तो ऐसा उदाहरण है जो धोकाधड़ी की पकड़ाई में आ गया है ऐसे अनेक संत है जिनके अपराध कानून की पकड़ से बाहर है| इस उदाहरण से भिन्न सन्दर्भ में मीडिया में सुर्खियों में आई खबरों में संत आशाराम महाराज के भी अनेक किस्से पहले गुजरात तक सीमित थे अब पूरे देश में उनके नाम पर कालिख पुत रही है| धवल दाढ़ी कालिख में रंग गयी है| ज़मीन हड़पने से लेकर हत्या तक के कथित आरोप उन पर लगाए गए हैं| उनके आश्रम में बच्चे की मौत का मामला अभी तक जांच के घेरे में है|
पहले के संत मोक्ष का रास्ता खोजने जंगलों में चले जाते थे| सरकारी-दरबारी कैसी भी सुविधा या संपन्नता से परहेज पालते थे| अब के संत बड़ी-बड़ी महलनुमा कोठियों से निकल कर महँगी आयातित वातानुकूलित कारों में सवार होकर बाहर निकलते हैं| आधुनिक तकनालाजी से सुसज्जित जिसमें रोशनी और ध्वनि के लिए मंच पर कम्पुटरराइज्ड व्यवस्था रहती है| ऐसे वातानुकूलित मंच से प्रवचन देते हैं| मंत्रियों और अफ़सरों के आगे यही संत चापलूसी में झुक- झुक जाते हैं|
कभी संत मलूकदास ने कहा था,
-“संतन को कहा सीकरी से काम
आवत-जावत पनहिया टूटी बिसरी गयो हरिनाम ”
तुलसीदास को भी जब अकबर बादशाह ने दरबारी बनने के लिए बुलाया था तो तुलसीदास ने भी कुछ ऐसा ही कहा था-
हम चाकर रघुवीर के, परो लिख्यो दरबार,
तुलसी अब का होहिंगे, नर के मनमबदार|
ईश्वर के प्रति ऐसी भक्ति, नैतिकता का ऐसा दबाव और संतत्व के प्रति ऐसा समर्पण अब ऐसे बाजार समय में दुर्लभ है. ५३ लाख रुपयों के लिए सुधांशु महाराज ने कथित धोखाधड़ी की.
ज़मीनों को हड़पने और आश्रमो में गैर कानूनी कार्यों के कथित आरोप आशाराम जी पर भी है| आशाराम जी को भी खुद को संत कहलाने का बड़ा शौक है| दरअस्ल आजकल का संत होना अपवाद को छोडकर लोभ या सुविधा-संपन्नता की चाहत तो है साथ ही यह एक मनोवैज्ञानिक रोग भी है| बगैर कोई परिश्रम किये, बगैर कोई उच्च शिक्षा के महज धार्मिक प्रवचन के अभ्यास के आधार पर आजकल हर कोई संत बनने के इस शार्टकट रास्ते पर निकल पड़ा है| छोटे बड़े संतो की बाड़ सी आ गयी है आयकर से चोरी की अकूत धन सम्पदा इस पेशे में आई है| मुर्ख,अपढ़ और पढ़े लिखे भावुक भक्तों की भीड़ जय जयकार करती रहती है| दो-चार धार्मिक प्रवचन रटना पड़ते है धर्म के मामले में कोई तर्क वितर्क की गुंजाइश भी नहीं होती है| कोई खड़ा होकर तर्क पूर्ण सवाल भी नहीं करता है| सिर्फ भक्ति की बातें करता है| समाजिक,सांस्कृतिक और साहित्य के क्षेत्र में प्रवचन या व्याख्यान देने के लिए जो विद्वता,अध्यन और दक्षता चाहिए ऐसे अनिवार्यता अक्सर धार्मिक प्रवचनों में नहीं रहती है|
santan parmra chali aai, kahe/likhe kuchch KARE alag. pahle bhi ye hi haal tha,,,,,,,,,,,,,atit hame tark karane nahi deta
ReplyDeleteसार्थक और सामायिक लेख ...इन सबसे बचने का एक ही तरीका है घर पर ही ध्यान करें एक बार में केवल एक काम करें...वही ध्यान हो जाएगा...."
ReplyDeleteseekri wala pad 'kumbhandas' ka hai, malookdas ka nahin
ReplyDeleteसुधांशु हों या आसाराम ,
ReplyDeleteजब तक मुर्ख जिन्दा है चतुरों को
किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होगी .
आपकी चिंता वाजिब है , लेकिन कर क्या सकते हो .
लोग इस सोच के मारे हुआ है की
" जाही विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ".
प्रिय भालचंद,
ReplyDeleteतुम्हारी पोस्ट देख कर आनंद आया .
सच यही है कि लोगो को तब तक मूर्ख
बनाया जा सकता है जब तक कि उन्हें बनाया जा सकता है.
यही स्तिथी साहित्य में भी है.
बधाई .