हतई

‘हतई’ शब्द निमाड़ अंचल की बोली निमाड़ी का शब्द है. ‘हतई’ निमाड़ के गांवों में चौपाल की भांति एक ऐसा स्थान या चबूतरा होता है, जिसकी छत चार कॉलम या स्तम्भों पर टिकी होती है और प्रायः चारों और से खुली होती है. इस चौपाल या ‘हतई’ पर गांव के लोग शाम को इकट्ठे होकर गपशप करते है. गांव या घर-परिवार की समस्याओं पर चर्चा करते हैं. अपने सुख-दुःख की बातें करते हैं.

Sunday, June 20, 2010

संतत्व का बाजार

संत शिरोमणि परम पूज्य कहे जाने वाले, माने जाने वाले श्री सुधांशु महाराज पर धोकाधडी का केस दर्ज हो गया है| केस दर्ज हुआ है साथ ही गिरफ़्तारी का वारंट भी जारी हो गया है| धार्मिक प्रवचनों में बड़ी श्रद्धा के साथ नियमित हाजरी देने वाले भक्तों के लिए गहरे सदमे की खबर है| लेकिन वे खुद को और शंकालुओं को समझाने के लिए अनेक भावुक तर्क, संत को बदनाम करने की साज़िश के आवेश भरे आरोप खोज लेंगे| संत कहते हैं की मोक्ष के लिए मिट्टी, पत्थर, सोना और रुपया पैसा एक समान होता है| पर ये दूसरों को समझाने के लिए है| दूसरों के मन के पाप को मारने के लिए कहा जाता है| संत का मन जरा बड़ा पापी होता है| वह ऐसे भावुक तर्कों से परास्त नहीं होता है| संत दूसरों को जितना अधिक मोह से निकलने के लिए जोर लगाता है न्यूटन के गति के नियम के आधार पर विपरीत दबाव से खुद उतने ही जोर से पाप में धंसता जाता है| सुधांशु महाराज तो ऐसा उदाहरण है जो धोकाधड़ी की पकड़ाई में आ गया है ऐसे अनेक संत है जिनके अपराध कानून की पकड़ से बाहर है| इस उदाहरण से भिन्न सन्दर्भ में मीडिया में सुर्खियों में आई खबरों में संत आशाराम महाराज के भी अनेक किस्से पहले गुजरात तक सीमित थे अब पूरे देश में उनके नाम पर कालिख पुत रही है| धवल दाढ़ी कालिख में रंग गयी है| ज़मीन हड़पने से लेकर हत्या तक के कथित आरोप उन पर लगाए गए हैं| उनके आश्रम में बच्चे की मौत का मामला अभी तक जांच के घेरे में है|

पहले के संत मोक्ष का रास्ता खोजने जंगलों में चले जाते थे| सरकारी-दरबारी कैसी भी सुविधा या संपन्नता से परहेज पालते थे| अब के संत बड़ी-बड़ी महलनुमा कोठियों से निकल कर महँगी आयातित वातानुकूलित कारों में सवार होकर बाहर निकलते हैं| आधुनिक तकनालाजी से सुसज्जित जिसमें रोशनी और ध्वनि के लिए मंच पर कम्पुटरराइज्ड व्यवस्था रहती है| ऐसे वातानुकूलित मंच से प्रवचन देते हैं| मंत्रियों और अफ़सरों के आगे यही संत चापलूसी में झुक- झुक जाते हैं|

कभी संत मलूकदास ने कहा था,

-संतन को कहा सीकरी से काम

आवत-जावत पनहिया टूटी बिसरी गयो हरिनाम

तुलसीदास को भी जब अकबर बादशाह ने दरबारी बनने के लिए बुलाया था तो तुलसीदास ने भी कुछ ऐसा ही कहा था-

हम चाकर रघुवीर के, परो लिख्यो दरबार,

तुलसी अब का होहिंगे, नर के मनमबदार|

ईश्वर के प्रति ऐसी भक्ति, नैतिकता का ऐसा दबाव और संतत्व के प्रति ऐसा समर्पण अब ऐसे बाजार समय में दुर्लभ है. ५३ लाख रुपयों के लिए सुधांशु महाराज ने कथित धोखाधड़ी की.

ज़मीनों को हड़पने और आश्रमो में गैर कानूनी कार्यों के कथित आरोप आशाराम जी पर भी है| आशाराम जी को भी खुद को संत कहलाने का बड़ा शौक है| दरअस्ल आजकल का संत होना अपवाद को छोडकर लोभ या सुविधा-संपन्नता की चाहत तो है साथ ही यह एक मनोवैज्ञानिक रोग भी है| बगैर कोई परिश्रम किये, बगैर कोई उच्च शिक्षा के महज धार्मिक प्रवचन के अभ्यास के आधार पर आजकल हर कोई संत बनने के इस शार्टकट रास्ते पर निकल पड़ा है| छोटे बड़े संतो की बाड़ सी आ गयी है आयकर से चोरी की अकूत धन सम्पदा इस पेशे में आई है| मुर्ख,अपढ़ और पढ़े लिखे भावुक भक्तों की भीड़ जय जयकार करती रहती है| दो-चार धार्मिक प्रवचन रटना पड़ते है धर्म के मामले में कोई तर्क वितर्क की गुंजाइश भी नहीं होती है| कोई खड़ा होकर तर्क पूर्ण सवाल भी नहीं करता है| सिर्फ भक्ति की बातें करता है| समाजिक,सांस्कृतिक और साहित्य के क्षेत्र में प्रवचन या व्याख्यान देने के लिए जो विद्वता,अध्यन और दक्षता चाहिए ऐसे अनिवार्यता अक्सर धार्मिक प्रवचनों में नहीं रहती है|

भारत में यह धंधा न सिर्फ खूब फल-फूल रहा है बल्कि बहुत तेजी से देश के बाहर भी पैर पसार रहा है| यानि अब मामला डालर का हो गया है| धर्म को डालर की सवारी ज्यादा पसंद आ रही है| अनेक संतो के आलिशान दफ्तर है जहा सुन्दर रिसेप्शनिस्ट बैठती है| अनेक बड़े शहरों में दलाल हैं जो प्रवचन के लिए उनकी बुकिंग करते है, ऑनलाइन भी बुकिंग होती है| इनके भक्तों में बड़े सेठ और उद्योगपति होते है| ये उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञो के बीच की सशुल्क कड़ी भी होते है| भक्ति और धर्म के नाम पर सब कुछ होता है| अरबो खरबो का धंधा शान से चल रहा है| संतई के इस धंधे में बड़े बाज़ार की सम्भावना ने महिलाओ को भी आकर्षित किया है| अनेक कथित संयासिनियो ने इस क्षेत्र में कदम रखा है और खूब धन कूट रही है|शानदार सौंदर्य प्रसाधनों के माध्यम से जब मेकअप करके वे मंच पैर आती है तो सादे कपड़ो के बावजूद अनेक मनचलों के दिल के धड़कने बढ़ जाती है|सबसे बड़ी बात तो यह है की सेंसेक्स के उतार चढ़ाव से इस बाज़ार पैर कोई फर्क नहीं पड़ता है|

5 comments:

  1. santan parmra chali aai, kahe/likhe kuchch KARE alag. pahle bhi ye hi haal tha,,,,,,,,,,,,,atit hame tark karane nahi deta

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  2. सार्थक और सामायिक लेख ...इन सबसे बचने का एक ही तरीका है घर पर ही ध्यान करें एक बार में केवल एक काम करें...वही ध्यान हो जाएगा...."

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  3. seekri wala pad 'kumbhandas' ka hai, malookdas ka nahin

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  4. सुधांशु हों या आसाराम ,
    जब तक मुर्ख जिन्दा है चतुरों को
    किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होगी .
    आपकी चिंता वाजिब है , लेकिन कर क्या सकते हो .
    लोग इस सोच के मारे हुआ है की
    " जाही विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ".

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  5. प्रिय भालचंद,
    तुम्हारी पोस्ट देख कर आनंद आया .
    सच यही है कि लोगो को तब तक मूर्ख
    बनाया जा सकता है जब तक कि उन्हें बनाया जा सकता है.
    यही स्तिथी साहित्य में भी है.
    बधाई .

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